Ajay

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जुस्तजू भाग --- 18

बात दिल की:- 

क्षमा कीजिएगा पहले इसे लिखने के लिए। पता नहीं क्यों कहानी की नायिका को मिलने वाले दर्द को इस भाग में नहीं लिखना चाहता पर अगर ऐसा हुआ तो निश्चित ही नायिका के साथ लेखक की भी मजबूरी ही समझिएगा।🙏🏻🙏🏻


ए जिन्दगी कैसी पहेली है तू ??
जितना सुलझाती हूं, उतनी उलझ जाती हूं।।
(नायिका के मनोभाव)


कई वर्षों बाद आरूषि पहली बार सुकून में थी। जिस प्यार, अपनेपन, परवाह, रिश्तों की तलाश उसे थी। इन दिनों जैसे वह सब कमी पूरी हो गई थी। आज का दिन उसके लिए खुशियों भरा था। उसने अपने खोए परिवार को ही नहीं पाया था बल्कि ससुराल में भी उसे भरपूर प्यार और सबसे बढ़कर अपने पति  अनुपम को सचमुच पा लिया था। बेशक जल्दीबाजी में सही पर उसके विवाह की पूरी रस्मों को निभाया गया था। 

  सुबह के 4 बजे थे। श्रीनाथ जी की मंगला आरती से पहले वह उठ गई थी और अनुपम को निहारते हुए सोच रही थी। सोते हुए अनुपम उसे और भी मासूम बच्चे सा लग रहा था। उसने बेहद सावधानी से उसके माथे को चूमा और दैनिक कर्मों से निवृत होने चली गई। अनुपम की भी आंख खुल गई थी पर वह बिस्तर पर निश्चल पड़ा था। आरूषि के प्यार दर्शाने का तरीका उसे भावुक कर गया था। उसे अब आरूषि खतरे से बाहर निकलती महसूस हुई थी। वह दिल से बड़ी दादी और आरूषि के ननिहाल का शुक्रगुजार था। वह उठता कि आरूषि नहाकर आ गई थी। गीले बालों से बहती नन्ही बूंदे उसे और खूबसूरत बना रही थी। अनुपम को ऐसे देखकर वह शर्मा गई।

"ऐसे क्या देख रहे हैं ?"

"अपनी पत्नी को जो सपना सच होने जैसी लग रही है।"

"धत"आरूषि रक्तिम हो चली थी।

"हां डरावना सपना सच होता दिख रहा है।" उसने आरूषि को छेड़ा।

"अच्छा !! यह डरावना सपना है ?"

"और नहीं तो क्या ? अब राजकुमारी जी के गुस्से और नखरे उम्र भर जो झेलने पड़ेंगे।" वह उसे चिढ़ाने लगा।

"तो इतना बुरा लगा आपको ?"आरूषि रोने सी हो गई।

"हां क्योंकि राजकुमारी 3 साल से दूर जो थी !!" 

अब आरूषि समझ गई कि अनुपम उसे चिढ़ा रहा था। वह भी इस खेल में शामिल हो गई। "तो यह राजकुमारी आपको अपने बंधनों से मुक्त करने को तैयार है !"

"पर मैं तो हमेशा राजकुमारी जी की सेवा में रहना चाहता हूं।"

"तो उठ जाइए, दर्शन को चलना है।"

"जो हुक्म सरकार" 

"अब यह क्या है ?"

"अपनी दासता की स्वीकारोक्ति !"

आरूषि को उसकी बातें रोमांचित कर रही थी। "अब उठ जाइए। वरना दर्शन को देर हो जाएगी।"

अनुपम तैयार होकर उसे लेकर मंदिर चला गया। जनवरी के शुरुआती दिन थे तो ठंड भी बहुत थी। गाड़ी से निकलते ही ठंडी हवा ने आरूषि को सिहरने पर मजबूर कर दिया। अनजाने में वह अनुपम के बेहद करीब हो गई। मानो श्रीनाथजी इस जोड़ी को अपना आशीर्वाद देना चाहते थे। 
  लौटते हुए लगभग साढ़े छः बज गए थे। आरूषि ने मम्मीजी को फ़ोन लगा दिया। वह व्यस्तता के कारण अपनी सास के सकुशलता के समाचार नहीं ले पाई थी।

"प्रणाम मम्मी जी !"

"सदैव खुश रहो।"

"आप सभी सकुशल पहुंच गए ? "

"हां, लो आरव से बात करो।"

"आरव आपके पास है !!!"

"आजकल मेरे ही पास रहता है। लो बात करो।"

 आरूषि इतनी सुबह अपने बच्चे से बात कर निहाल हो गई। उसने अनुपम से भी उसकी बात कराई। अनुपम भी बेहद भावुक हो गया था। आखिर उसे अपने बच्चे से मिलने का वक्त कहां मिल पाया था !!

"हुकुम, कलेवो लाग ग्यो है "तभी नौकर ने आकर विनम्रता से आरूषि से कहा।

"आप चलिए, हम आते हैं।"आरूषि ने जवाब दिया। अनुपम की आंखों में नमी थी और वह छुपा रहा था उससे। पर वह समझ गई। 

"हमें लौटना भी है।"

"हम्म, चलिए।"

********
उधर सुबह शिवेन्द्र की हालात खराब हो गई थी। उसे हॉस्पिटलाइज किया गया था। आरूषि ने उसका ऑपरेशन किया था तो उसका कंसल्टेशन बेहद जरूरी था। हॉस्पिटल से उसे फोन किया जा रहा था। पर मोबाईल बिजी आने पर उसके घर पर फोन किया गया। सौम्या वहां अपनी किताबें लेने आई थी। फोन की घंटी सुनकर पहले तो उसने प्यून को आवाज देने का सोचा पर फिर उठा लिया

"हेलो...."

"डॉक्टर आरूषि, आपके पेशेंट की हालत खराब है..."

"जी, वो तो नहीं है। वैसे आप पूरी जानकारी देंगी मैं उनकी बहिन डॉक्टर सौम्या बोल रही हूं।" उसने पूरी जानकारी देना बेहतर समझा।

"जी डॉक्टर, उनके पेशेंट डीएसपी शिवेंद्र....."

"क्या हुआ है उन्हें ?"अनायास ही सौम्या घबरा उठी।

"जी, प्लीज उन्हें इनफॉर्म कीजिए।"

सौम्या घबरा उठी। उसने आरूषि को फोन लगा दिया।
 आरूषि ने जैसे ही फोन उठाया सौम्या की घबराई आवाज सुनाई दी,"दी वो वो.. शिवेन... शिवेंद्र.....।"

"क्या हुआ है सौम्या ? कॉम डाउन ! कॉम डाउन ! टेल मी।"

"शिवेन को हॉस्पिटलाइज किया है, आपको बुलाने को कहा है।"

"कहां एडमिट किया है उसे ?"

"दी, पीजीआई से फोन था। दी प्लीज़ कुछ करो दी !!"
सौम्या की घबराई आवाज में शिवेन से उसके लगाव होने की पुष्टि हो रही थी पर अभी आरुषि के लिए उसके पेशेंट और एकमात्र भाई की बात थी। उसने तुरंत डिसीजन लिया।

"ओके, ओके, मैं किंग जार्ज के सर्जन सर, जिन्होंने उसके ट्रीटमेंट में मदद की थी, बात करती हूं। तुम भी वहां पहुंचो और मुझे सिचुएशन एक्सप्लेन करो। जब तक मैं पीजीआई बात करती हूं।"

अनुपम भी समझ गया था। उसने उदयपुर अपने परिवार में फ़ोन कर सारी स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने तुरंत एयरपोर्ट सभी सामान सहित उसके भाई को भिजवा दिया। अनुपम ने सीएमओ फोन कर हेल्प मांगी। वहां से दिल्ली फोन कर इमरजेंसी में उदयपुर से लखनऊ तक की नेक्स्ट कनेक्टिंग फ्लाइट्स बुक करवाने का इंतजाम करवा दिया गया।

सौम्या भी बंगले से अपनी स्कूटी पर रवाना होकर पीजीआई पहुंच गई थी। प्रिंसिपल ने आरुषि की बात शिवेंद्र को ट्रीट कर रहे डॉक्टर से करवा दी। आरुषि ने उन्हें एक्सप्लेन किया। कुछ ही देर में किंग जार्ज के सीनियर सर्जन भी पहुंच गए थे। सौम्या ने ट्रीटमेंट फॉलोअप आरुषि को देना शुरू कर दिया था। 2 घंटे में आरुषि लखनऊ उतर गई और वहां से सीधे पीजीआई चली आई। उधर आरुषि के मामाजी भी रवाना हो चुके थे। आरुषि ने तुरंत न्यूरो फिजिशियन को कंसल्ट किया। अब शिवेंद्र की हालत स्थिर थी। फिजिशियन ने स्ट्रेस केस बताते हुए ट्रीटमेंट लाइन तय की। आरुषि ने वहीं रुकने का निश्चय किया। पर सौम्या भी घर जाने को राजी नहीं थी। कल उसकी परीक्षा भी थी। आरुषि ने अनुपम और उसके घर फ़ोन कर उसकी किताबें मंगवा ली और सुबह उसके सेंटर भी भिजवाने का प्रबंध करवा दिया। आरुषि सौम्या के चेहरे पर शिवेंद्र की परवाह देख रही थी। उसे लगा उसकी होने वाली भाभी दिख गई थी। वह मन ही मन खुश थी पर अभी कुछ बताने का समय न था। सौम्या को उसने पूरी रात पढ़ाया और शिवेंद्र को भी संभाला। सुबह अनुपम उसके मामाजी को ले आया और सौम्या को परीक्षा देने ले गया। सौम्या को अनुपम ने बड़े धैर्य से समझाया परीक्षा के बाद उसे वापस घर छोड़ने का वादा भी किया।

"थैंक यू जीजाजी, पर मेरी स्कूटी पीजीआई में ही है। मैं लेकर घर चली जाऊंगी। आप वहां भिजवा दीजिएगा।"

 अनुपम मुस्कुरा उठा। उसे भी सब समझ आ गया था।

परीक्षा देते ही सौम्या वापस पीजीआई पहुंच गई थी। आरुषि ने शिवेंद्र को छुट्टी दिलवा ली थी और अपने बंगले ले जाने का निश्चय कर लिया था। वह शिवेंद्र को अपनी ऑब्जर्वेशन में ही रखना चाहती थी। उधर अनुपम ने सौम्या की छुट्टियां बढ़वा दी थी जिसका अनुरोध सौम्या ने किया था। मामाजी भी शिवेंद्र की देखभाल से संतुष्ट होकर आरुषि के कहने पर उदयपुर लौट गए थे। उधर ईलाज के दौरान सौम्या और शिवेंद्र के बीच अपनापन बढ़ रहा था। बेशक दोनों ही मानने को तैयार नहीं थे और उनके बीच वैसे ही नौंक झौंक चल रही थी। आरुषि सौम्या के रहने से पीजीआई में अपने काम को कर पा रही थी। अनुपम और वो घर पर दोनो की नौंक झौंक को समझ रहे थे और उनके झगड़ों से परेशान भी थे पर मन ही मन खुश भी थे। शिवेंद्र ठीक होकर काम पर लौट गया था। सौम्या भी गाजीपुर लौट गई थी। उधर आरुषि की लाइफ फिर से पढ़ाई और पीजीआई में कट रही थी। अब उस घटना के बाद उसे कई बार इंडिविजुअल और कठिन सर्जरी में साथ लिया जा रहा था। वहीं अनुपम की चिंता प्रिंसिपल ने आरुषि के मानसिक स्थिति की तरफ से मिटा दी थी। परीक्षा में आरुषि उत्तर प्रदेश में प्रथम स्थान पर थी। अब उसे पीजीआई में ही मौका दे दिया गया था।

सौम्या का भी एमएस में एडमिशन हो गया था वहीं शिवेंद्र को कानपुर पोस्टिंग मिल गई थी। अब दोनों की आपस में मुलाकात बढ़ गई थी। कभी आरुषि के बंगले पर और कभी कभी अकेले भी। अब दोनों को अपनी केमिस्ट्री समझ आने लगी थी।
आरुषि की प्रसिद्धि बढ़ रही थी और उसका काम भी।  तभी मम्मीजी लखनऊ आई थी। वहीं उनको माइल्ड हार्ट अटैक आया । उन्हें पीजीआई एडमिट करवा दिया गया था। आरुषि उनसे बहुत चाहती थी अतः वो उन्हें संभालने में दिन रात एक कर बैठी थी।

अचानक शिवेंद्र को अकबरपुर पोस्ट किया गया। वहां सांप्रदायिक तनाव चरम पर था। चुनाव नज़दीक थे और राजनीतिक साजिशों ने स्थिति और गंभीर कर दी थी। शिवेंद्र ने काम संभाला ही था कि दंगे भड़क गए। एक ही दिन में स्थिति काबू से बाहर हो गई थी। सीएम और गृह मंत्री ने तुरंत वहां के कलेक्टर और एसएसपी को हटाया और अनुपम और नए एसएसपी को वहां भेजने का निर्णय लिया। अनुपम उसी रात को वहां पहुंच गया। तुरंत ही नए एसएसपी और उसने दंगा ग्रस्त इलाकों का दौरा किया और प्रशासनिक मशीनरी को हाई अलर्ट पर ला दिया। दूसरी सुबह गांवो में स्थिति पूरी तरह काबू में आ गई थी। बेहद प्रभावित शहर के एक मोहल्ले को छोड़कर सब जगह शांति कायम कर दी गई थी और यह काम सेना बुलाए बगैर कर लिया गया था। 
अनुपम ने रात भर में ही सारे दंगाइयों को जेल पहुंचवा दिया था और सभी पक्षों के नेताओं को मजबूर कर दिया कि वे शांति कार्यों में मदद करें। एसएसपी तभी उससे मिलने ऑफिस आ पहुंचे सुबह के 4 बजे थे।

"सर दंगाइयों को रामपुर से मदद मिल रही है।"

"आप वहां के एसएसपी से बात करें और ख़ुद जाकर एक्शन लें मैं भी वहां के कलेक्टर से बात करता हूं अभी। आप अपनी टीम के साथ अभी रवाना हो जाएं।"

"पर यहां...."

"आप अपने नेक्स्ट ऑफिसर को निर्देश दे दें।"

उन्होंने वहीं शिवेंद्र को निर्देश देकर स्थिति संभालने का और ख़ुद रामपुर पहुंचने का निर्णय ले लिया।

"सर आपकी एक्सपार्टाइज की इन्हें जरूरत होगी।"एसएसपी ने जाते हुए अनुपम से कहा।

अनुपम ने उन्हें आश्वस्त किया। सुबह 8 बजे तक सारे पकड़े जा चुके थे उधर शिवेंद्र ने लोकल सपोर्टर्स को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया था। तभी अनुपम को शिवेंद्र को घेर लेने की उसे सूचना मिली। स्थिति गंभीर थी। सारे सीनियर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी अन्य इलाकों में व्यस्त थे। उसने ख़ुद जाने का निर्णय लिया। कुछ जूनियर पुलिस ऑफिसर्स को लेकर वो वहां पहुंच गया। उसकी चेतावनी और उपस्थिति ने जादू दिखाया। शिवेंद्र की टीम मुक्त की जा चुकी थी। 
अनुपम वहां के संभ्रांत और धार्मिक नेताओं को साथ लेकर गली गली घूम कर स्थिति काबू में ला ही रहा था। अचानक उसकी नजर शिवेंद्र को टारगेट कर गोली चलाने के लिए तैयार एक गुंडे पर पड़ी।

"धांय" आटोमेटिक राइफल की आवाज़ गूंजी।

!!!!!!!!!!!

शिवेंद्र को धक्का लगा। तभी उसने अनुपम को गिरते देखा.......।



...............





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6 Comments

Sandhya Prakash

25-Jan-2022 08:19 PM

सस्पेंस के साथ धड़कने ही बढ़ा दी इस पार्ट ने...

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Ajay

26-Jan-2022 12:28 AM

🙏🏻

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Aliya khan

30-Dec-2021 10:38 PM

Ye kya ho gaya goli lag gyi

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Ajay

30-Dec-2021 11:29 PM

आगे और मोड़ हैं।🙏🏻

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🤫

29-Dec-2021 10:16 PM

ओह नो, कुछ गलत होने के आसार नजर आ रहे हैं कहानी एक अलग मोड़ ले रही है। अगले भाग की प्रतीक्षा है।

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Ajay

29-Dec-2021 10:20 PM

🙏🏻

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